Monday, June 21, 2010

वोह एक लड़की

वोह   एक  लड़की
 मखमल  के  जैसी 
 ओस  में  नहाई  
सकुचाई  शरमाई
 सुंदर  सा  मुखड़ा
 वोह  एक  लड़की .  
अलबेली,   अनजानी ,  
थोड़ी  सी  पहचानी, 
 आँखों  में  सपने  है 
 सपने  जो  अपने  है 
 कुछ  कर  गुजरने  का 
 जज्बा  भी  था  उसमें 
 वोह   एक  लड़की. 
 छूने  को  तारों   को
 बहती  बयारों   को 
 मन  में  उमंगें  थी 
 तिरती  तरंगे  थी 
.साह्स  और  छमता का 
 संगम  अनूठा  था 

वोह एक लड़की .

2 comments:

  1. वोह एक लड़की.
    छूने को तारों को
    बहती बयारों को
    मन में उमंगें थी
    तिरती तरंगे थी
    .साह्स और छमता का
    संगम अनूठा था
    vo jaroor aap hee hoMgee bahut sundar kavitaa hai badhaaI

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  2. आप ने एक बुलंद इरादों वाली लड़की की सुन्दर तस्वीर खीच दी है ..बधाई ...

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मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.