बो गया है नफरतें .....
बो गया है नफरतें ये
कौन दिल के खेत में,
हम महल बनवा रहे हैं
इस फिसलती रेत में॥
आग सी लगने लगी है
हर सुनहरे ख्वाब में
हम खड़े हैं आस रखे,
जमुन-गंग दोआब में॥
दे रहे आवाज़ सुन लो
मीठे जल से सींच लो,
अब भी मौका है कि सम्भलो
हाँथ अपने खींच लो॥
क्या किया उनके लिये
आगत सवांरा ही नहीं,
कैसे वो फूले फलें
सोंचा विचारा ही नहीं॥
कुछ करो ऐसा करो कि
नफरतें दिल हार दें
प्रेम से पूरित हृदय हों
प्यार का उपहार दें॥
बो गया है नफरतें ये
कौन दिल के खेत में,
हम महल बनवा रहे हैं
इस फिसलती रेत में॥
पूर्णिमा बाजपेयी त्रिपाठी
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