रत है जो औरों के लिए
उस औरत का दर्द भी
साँझा होता है .
बाप की देहलीज पर
माँ के आंसुओं की
सांझी पीड़ा ,
जवान बहनों के
बुढ़ाते अरमानो
की कसक
बेरोजगार भाई की
आँखों में व्यवस्था
के खिलाफ
आक्रोश
सबके आसुओं
के साथ
अपने भी आंसू
मिला ,साथ- साथ
पीती है .करती है
संघर्ष अपने
अस्तित्व की पहचान को
शाख से टूटकर
जोडती है
तिनका तिनका
बनाती है नीड़
बाँटती है दुःख
और दर्द सांझे
इस घर के
उस घर के.
Tuesday, March 2, 2010
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- PURNIMA BAJPAI TRIPATHI
- Kanpur, Uttar Pradesh, India
- मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.