अपनी कोमल भावनाओं
निश्चल व्यवहार
दुनियावी पाखण्ड से दूर
तुम फिर छली गयी
क्यों तुमने अपनी आँखों पर
भावनावों का चश्मा
चढ़ा रखा है.
क्यों तुम बार-बार
लुटती हो, टूटती हो,बिखरती हो.
कभी न सिमटने के लिए
खुद को मानो ,जानो,पहचानो
भेड़ियों की भीड़ में
बकरी बन मिमियाने
से मिट जाओगी
सिंहनी बन दहाड़ो.
पूर्णिमा त्रिपाठी
Wednesday, November 10, 2010
बदनाम
तंग दिल
बजबजाती गलियाँ
भुतहे चेहरे
सभी कह रहे है
की मै बदनाम हो गयी हूँ.
मेरी कमजोर भावनाओं ,
आहत संवेगों ने
मुझे बदनामी की
दूकान बना दिया है.
चाहत के बाजार में
मैं प्रतिदिन बिकी हूँ .
उन भुतहे चेहरों की
सूखे होठों पर
लपलपाती जीभें
पूरे का पूरा खा
जाने वाली निगाहें
मुझमें ग्लानि नहीं जगाती
क्योंकि, मैंने
मन के बाजार में
चाहत की दूकान सजाकर
प्रेम की मुद्रा ले कर
देह की बेदी पर
एक लौ लगाई है .
मेरा तन और मन
मिलन स्थल है
उस क्षण का
जहां साड़ी कायनात से परे
एक शब्द गूजता है
प्रिय- प्रियतम- प्रेम
और तोड़ देता है बदनामी के
सारे मिथकों को.
पूर्णिमा त्रिपाठी
बजबजाती गलियाँ
भुतहे चेहरे
सभी कह रहे है
की मै बदनाम हो गयी हूँ.
मेरी कमजोर भावनाओं ,
आहत संवेगों ने
मुझे बदनामी की
दूकान बना दिया है.
चाहत के बाजार में
मैं प्रतिदिन बिकी हूँ .
उन भुतहे चेहरों की
सूखे होठों पर
लपलपाती जीभें
पूरे का पूरा खा
जाने वाली निगाहें
मुझमें ग्लानि नहीं जगाती
क्योंकि, मैंने
मन के बाजार में
चाहत की दूकान सजाकर
प्रेम की मुद्रा ले कर
देह की बेदी पर
एक लौ लगाई है .
मेरा तन और मन
मिलन स्थल है
उस क्षण का
जहां साड़ी कायनात से परे
एक शब्द गूजता है
प्रिय- प्रियतम- प्रेम
और तोड़ देता है बदनामी के
सारे मिथकों को.
पूर्णिमा त्रिपाठी
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- PURNIMA BAJPAI TRIPATHI
- मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.