वो क्षण जब तुमने
मुझे छूकर,
कंचन बना दिया.
वो पल था अनमोल ,
जब तुमने अपने
प्रेम का प्रतिदान
मांग कर
मुझे दानी बना दिया .
वो क्षण जब तुम
किसी तरुण की भाति
याचक बन कर खड़े थे ,
और मैं किसी सोड्सी सम
अभिव्यक्ति से परे थी .
उस क्षण मैंने जी लिए
सहस्रों युग सहस्रों जन्म
और कैद कर लिया
उस अनुभूति को
जो अनुपम है ,अतुलनीय भी
जिसे महसूस कर
मरने से परे
मैं बार- बार
जी सकती हूँ .
पूर्णिमा त्रिपाठी
Thursday, November 18, 2010
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- PURNIMA BAJPAI TRIPATHI
- Kanpur, Uttar Pradesh, India
- मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.