Monday, February 12, 2024

 नमः वीणा धारिणी

नमः वीणा धारिणी

दुख कलेश निवारिणी,

मेरे सारे पातक हर लो

मेरे मन मंदिर को वर लो॥

मातु तुम्हारी अनुपम गाथा

सुनकर सभी झुकाएं माथा,

मेरी वाणी लेखनी बनो तुम

मेरी बनाओ छवि अनूपम्॥

दे दे मां मुझको तू सहारा

मांगूं तुझसे ज्ञान पिटारा,

विद्द्या की मां हो अधिष्ठात्री

दुर्गा तुम हो तुम्ही हो गायत्री॥


पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

109/191ए, जवाहर नगर कानपुर

मो. 8707225101

Monday, January 15, 2024

 

राम तुम आधार हो

राम तुम आधार हो

राम तुम व्यवहार हो,

तुम अहिल्या की प्रतीक्षा

शबरी के सत्कार हो॥

जिंदगी की हर प्लावन का

राम तुम तटबंध हो,

मन का मन से हो मिलन

तुम वह सुखद अनुबंध हो॥

राम तुम अभिमान हो

उच्चतम प्रतिमान हो,

संस्कारों की बही के

तुम सुखद गुणगान हो॥

कल्पना कह कर तुम्हें

हम दूर कर सकते नहीं,

हम तुम्हारे अंश हैं

तुम हमारे प्राण हो॥

राम तुम अभिमान हो

उच्चतम प्रतिमान हो।।


पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेई

109/164 जवाहर नगर कानपुर

Tuesday, September 12, 2023

 

सारे जहां से न्यारी किताबें

किताबों की दुनियां

बड़ी ही सजीली बड़ी ही रंगीली,

निर्जन हृदय में हम सबके मन में

मीठा सा रस घोलती हैं किताबें॥

दादी औ नानी की प्यारी कहानी

सपनों के राजा औ परियों की रानी,

सबकी कहानी सबकी ज़ुबानी

खुद में समेटे सुनाती किताबें॥

दुनियां का विज्ञान दर्शन समेटे

दुनियां को दुनियां बनाती किताबें॥

हारे पलों मे थक कर जो बैठे

कुछ मीठे बैना सुनाती किताबें,

सबको लुभाती प्यारी किताबें

सारे जहां से प्यारी किताबें

सारे जहां से न्यारी किताबें॥

 

पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

109/191ए, जवाहर नगर कानपुर

 मो. नं 8707225101

Thursday, April 27, 2023

 गंगा तुम कितना सहती हो......

नगरी-नगरी गांव-गांव

पर्वतों की छांव-छांव

तुम सदा बहती ही रहती हो,

गंगा तुम कितना सहती हो॥

आस हो तुम स्वांस  

तुम विश्वास हो 

जिंदगी की तंत्रिका में चल रही

हर स्वांस हो॥

अपनी जलधारा से सबको सींचती हो

गंगा तुम कितना सहती हो॥

जन्म हो या हो मरण मे

समाहित तेरे चरण में,

जो भी आ जाये शरण में

भूलकर छल-कपट उसके

पाप सब तुम हरती हो॥

गंगा तुम कितना सहती हो॥

ठोकरें कितनी लगें तुमको

फिर भी सबको हंसाती हो,

जो भी प्राणी आये तेरे घाट पर

देके  तुम जीवन सरस सबको

प्यास सबकी बुझाती हो॥

धर्म जाति से परे होकर 

सबकी बाहें थाम लेती हो,

गंगा तुम कितना सहती हो॥


 पूर्णिमा त्रिपाठी

109/191 A, 

जवाहर नगर कानपुर

8707225101




Friday, September 30, 2022

 बो गया है नफरतें .....

 बो गया है नफरतें ये 

कौन दिल के खेत में,

हम महल बनवा रहे हैं

इस फिसलती रेत में॥

आग सी लगने लगी है

हर सुनहरे ख्वाब में

हम खड़े हैं आस रखे,

जमुन-गंग दोआब में॥

दे रहे आवाज़ सुन लो

मीठे जल से सींच लो,

अब भी मौका है कि सम्भलो

हाँथ अपने खींच लो॥

क्या किया उनके लिये 

आगत सवांरा ही नहीं,

कैसे वो फूले फलें

सोंचा विचारा ही नहीं॥

कुछ करो ऐसा करो कि 

नफरतें दिल हार दें

प्रेम से पूरित हृदय हों 

प्यार का उपहार दें॥

बो गया है नफरतें ये 

कौन दिल के खेत में,

हम महल बनवा रहे हैं

इस फिसलती रेत में॥


पूर्णिमा बाजपेयी त्रिपाठी

109/191 जवाहर नगर कानपुर 208012

8707225101

Friday, April 15, 2022

तन रंग मन रंग  रंग रंग रंग रंग 

तन रंग मन रंग  रंग रंग रंग रंग 

आंगन का हर कोना है,

जीवन के इस सांझ पहर में 

अनुभव का रंग दूना है॥

तन रंग मन रंग

कुछ कच्चे रंग कुछ पक्के रंग

कुछ झूठे रंग कुछ सच्चे रंग,

कुछ शर्माये कुछ घबराये 

कुछ बौराये कुछ अलसाये ।

रंग ही रंग सलोना है॥

तन रंग मन रंग….

सतरंगी सपनों के सतरंग

मुक्त पवन की चाल के हर रंग,

देहरी और दुआर के हर रंग,

छप्पर और पुआल के हर रंग।

रंग ही रंग बिछौना है॥

तन रंग मन रंग….

अम्मा की उम्मीदों का रंग 

बाबू की मेहनत का हर रंग

रंग रंग रंग रंग जीवन को रंग, 

जीव तू एक खिलौना है।

तन रंग मन रंग

पूर्णिमा बाजपेयी त्रिपाठी

109/191 ए, जवाहर नगर कानपुर

8707225101


Monday, January 3, 2022

विवशता

 मैं मां से मिलकर लौट रही थी मन मे भावनाओं का ज्वार उठ रहा था. पूरे  रास्ते एक द्वंद चलता रहा कब आटो वाले ने मंजिल पर ला खडा किया पता ही नहीं चला. मैडम उतरिये घूरेश्वर मंदिर आ गया. विचारों की श्रंखला में विराम लगा आजकल आटो वालों ने भी संबोधन मे तरक्की कर ली है बहन जी के स्थान पर मैडम को रिप्लेस कर दिया है. मैंने आटो वाले को पैसे देकर सामान निकाला बैग कुछ ज्यादा ही भारी हो गये थे मां की ममता पोटली दर पोटली वजन बढ़ा रही थी.मैने दर्वाजे पर पहुंच कर बेल दबाई मेरे दस वर्षीय पुत्र ने उछलते कूदते हुये बाल सुलभ चंचलता के साथ दरवाजा खोला.तेज नजरों से इंक्वारी करते हुये मेरे हाथ से बैग लेने का असफल प्रयास करते हुये बोला बहुत भारी है मां आपने इसमें पथ्थर भर रखे हैं क्या? नानू ने मेरे लिये क्या दिया? तब तक मेरी सासू मां और पतिदेव भी बैठक में पहुंच गये. काहे दुल्हिन अम्मा कैसी हैं तुम्हरी बचिहैं कि न बचिहैं राम जी रगड़ावैं न नहीं त बहुतय दुर्दशा हुई जहिहै.पतिदेव भी प्रश्नवाचक नजरों से देख रहे थे.मेरी आंखों के सामने मां का मुर्झाया पर उम्मीद भरा चेहरा घूम गया. उनकी थकी सी आवाज मेरे कानों में गूंज रही थी बिटिया इ सालिगराम, इ आशा मईया, इ कुड़हा मईया की बटिया अपने साथै लेत जैव इनमा पुरखन का आशीर्वाद और विश्वास है. तुम्हरी भौजाइ कहत रही इन गोल-गोल पथ्थरों की क्या जरूरत है अम्मा जी ज्वेलरी और फिक्स डिपाजिट हो तो बता दीजिये ताकि हम अभी से अरेंज करना शुरू कर दें अम्मा विवश और निशब्द. मेरे हाथ पीतल के कटोरदान मे रखी बटिया सहला रहे थे.


पूर्णिमा बाजपेयी त्रिपाठी

109/191 A, जवाहर नगर कानपुर

मो. 8707225101

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मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.