Friday, September 30, 2022

 बो गया है नफरतें .....

 बो गया है नफरतें ये 

कौन दिल के खेत में,

हम महल बनवा रहे हैं

इस फिसलती रेत में॥

आग सी लगने लगी है

हर सुनहरे ख्वाब में

हम खड़े हैं आस रखे,

जमुन-गंग दोआब में॥

दे रहे आवाज़ सुन लो

मीठे जल से सींच लो,

अब भी मौका है कि सम्भलो

हाँथ अपने खींच लो॥

क्या किया उनके लिये 

आगत सवांरा ही नहीं,

कैसे वो फूले फलें

सोंचा विचारा ही नहीं॥

कुछ करो ऐसा करो कि 

नफरतें दिल हार दें

प्रेम से पूरित हृदय हों 

प्यार का उपहार दें॥

बो गया है नफरतें ये 

कौन दिल के खेत में,

हम महल बनवा रहे हैं

इस फिसलती रेत में॥


पूर्णिमा बाजपेयी त्रिपाठी

109/191 जवाहर नगर कानपुर 208012

8707225101

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मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.