मैं नारी हूँ
पूर्णता का पर्याय
हे पुरुष मेरे
पास आकर तुम
पूर्णत्व को प्राप्त करो.
अपनी साड़ी जिज्ञासाएं
अनैतिक कुंठाएं
पूरी विसमतायें
मुझमे स्नान करके
मेरे ही अन्दर
छोड़ दो और
मैं उन्हें परिमार्जित
कर दूँगी एक
सुघड़ नया रूप
जो होगा एक
चेहरा सलोना
.उस नए प्रस्फुटन
को सामने रख
मैं तुम्हे उसमे
तुम्हारा ही रूप
दिखाउंगी तब तुम
मेरी क्षमता और
ममता को परख ,
मेरे आँचल में
सामाजाना.
और फिर एक बार
मै तुम्हे प्यार से
चूमकर सारी कुंठाओं
को दूर कर
तुम्हे पूर्ण पुरुष
बना पूर्णत्व दूँगी.
पूर्णिमा त्रिपाठी
Sunday, November 14, 2010
कामकाजी औरत
वो कामकाजी औरत
घर और समाज में
समानता का बोझ
अपने कंधे पर उठाये
स्कूलों ,दफ्तरों,
और समाज में अपनी
प्रतिभा बिखेरती है .
वो कामकाजी औरत
दिखती है गिट्टी तोड़ती
सड़कों से कचरा बीनती
दुधमुहें शिशु को परे रख
सर पर बोझ उठाती.
वो कामकाजी औरत
सहती है वासना
से भरी द्रष्टि
बचाती है समाज
के अस्तित्व को
फिर जानती है
एक पुरुष को
जो उघारता है
तन और मन
देता है नासूर
जो सालता है
उम्र दराज होने तक .
पूर्णिमा त्रिपाठी
घर और समाज में
समानता का बोझ
अपने कंधे पर उठाये
स्कूलों ,दफ्तरों,
और समाज में अपनी
प्रतिभा बिखेरती है .
वो कामकाजी औरत
दिखती है गिट्टी तोड़ती
सड़कों से कचरा बीनती
दुधमुहें शिशु को परे रख
सर पर बोझ उठाती.
वो कामकाजी औरत
सहती है वासना
से भरी द्रष्टि
बचाती है समाज
के अस्तित्व को
फिर जानती है
एक पुरुष को
जो उघारता है
तन और मन
देता है नासूर
जो सालता है
उम्र दराज होने तक .
पूर्णिमा त्रिपाठी
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- PURNIMA BAJPAI TRIPATHI
- Kanpur, Uttar Pradesh, India
- मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.