Sunday, July 21, 2024

 काल पर्वत 

फिर काल पर्वत का 

एक शिलाखंड

टूट कर बिखर गया।

कोई,

धीरे से आया

और चुपके से गुज़र गया।

अतीत हो गये हैं,

उसके पावों के निशान।

हम अतीत से 

मुक्त होकर,

आराधना करें वर्तमान की,

जिनका वर्तमान पर ध्यान है

उनका भविष्य भी महान है।

देखते - देखते 

समय रथ ओझल हो जाता है,

और अवसर की प्रतीक्षा में

अवसर

हांथ से निकल जाता है।

हर क्षण महनीय है,

एक अवसर है 

बीज बोने का।

आओ,

हम बीज बोएं 

निर्माण के।

खत्म हो

अंधेरे का वर्चस्व

विहान हो।

और सिर्फ 

सृजन हो,

उत्थान हो,

कल्याण हो॥

पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

109/191ए' जवाहर नगर कानपुर

मो.   8707225101

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मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.