काल पर्वत
फिर काल पर्वत का
एक शिलाखंड
टूट कर बिखर गया।
कोई,
धीरे से आया
और चुपके से गुज़र गया।
अतीत हो गये हैं,
उसके पावों के निशान।
हम अतीत से
मुक्त होकर,
आराधना करें वर्तमान की,
जिनका वर्तमान पर ध्यान है
उनका भविष्य भी महान है।
देखते - देखते
समय रथ ओझल हो जाता है,
और अवसर की प्रतीक्षा में
अवसर
हांथ से निकल जाता है।
हर क्षण महनीय है,
एक अवसर है
बीज बोने का।
आओ,
हम बीज बोएं
निर्माण के।
खत्म हो
अंधेरे का वर्चस्व
विहान हो।
और सिर्फ
सृजन हो,
उत्थान हो,
कल्याण हो॥
पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी
109/191ए' जवाहर नगर कानपुर
मो. 8707225101
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