Friday, November 26, 2010

जीवन गति

चल री पवन चल चल चल 
आज यहाँ कल वहां ठहर
जीवन कि गति शास्वत  संगम
जीवन दुख कि एक लहर .
माना जीवन में दुख आते 
एक झोके में सब बह जाते,
 झंझावातों से क्या डरना ?
दुख के अवसानो को लाते.
दुख कि निशा बीतने पर 
स्वर्णिम प्रभात मुस्काता है 
जीवन की राहें कर प्रशस्त 
सुखमय उसको कर जाता है 


पूर्णिमा त्रिपाठी
 

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Kanpur, Uttar Pradesh, India
मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.