Thursday, December 2, 2010

समय की किताब से

चुन लेते हैं
हम कुछ यादें
समय की किताब से
परिस्कृत ,परिसज्जित
 प्रस्फुटित प्रफुल्लित   
अपने हिसाब से .
निकलता है जो तत्व
भेद  जाता है हृदय की 
सघन परतों को  
और बनता है 
एक इतिहास 
जो अदृश्य है 
परन्तु अविस्मर्णीय नहीं 
और तब घूमता है 
आँखों के समक्ष 
एक चलचित्र 
आदि से अंत तक 
जो कहता है 
एक नई कहानी 
तस्वीरों की जुबानी 
जो सिला देती हैं 
हमारी भीरुता का 
की हम कितने कायर हैं 
सह गए वो अन्याय 
इतनी सहजता से 
जो असहनीय था 
मान बैठे उसे 
कर्म की इतिश्री 
बस सोंचकर 
की जो होना है 
सो हो चुका
पर मत भूलो 
की वर्तमान 
कल का अतीत है 
और समय
 उसका साक्षी. 

पूर्णिमा त्रिपाठी  

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Kanpur, Uttar Pradesh, India
मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.