चुन लेते हैं
हम कुछ यादें
समय की किताब से
परिस्कृत ,परिसज्जित
प्रस्फुटित प्रफुल्लित
अपने हिसाब से .
निकलता है जो तत्व
भेद जाता है हृदय की
सघन परतों को
और बनता है
एक इतिहास
जो अदृश्य है
परन्तु अविस्मर्णीय नहीं
और तब घूमता है
आँखों के समक्ष
एक चलचित्र
आदि से अंत तक
जो कहता है
एक नई कहानी
तस्वीरों की जुबानी
जो सिला देती हैं
हमारी भीरुता का
की हम कितने कायर हैं
सह गए वो अन्याय
इतनी सहजता से
जो असहनीय था
मान बैठे उसे
कर्म की इतिश्री
बस सोंचकर
की जो होना है
सो हो चुका
पर मत भूलो
की वर्तमान
कल का अतीत है
और समय
उसका साक्षी.
पूर्णिमा त्रिपाठी
Thursday, December 2, 2010
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- PURNIMA BAJPAI TRIPATHI
- मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.
सत्य वचन...
ReplyDeleteवर्त्तमान भी कभी भूत बनके आएगा.. तो इस वर्त्तमान को बेहतर तरीके से जीने की कोशिश हमेशा रहनी चाहिए ..
परिस्कृत ,परिसज्जित
ReplyDeleteप्रस्फुटित प्रफुल्लित
अपने हिसाब से .
निकलता है जो तत्व
भेद जाता है हृदय की
सघन परतों को
बहुत सार्थक पंक्तियाँ ...अच्छी प्रस्तुति
आदरणीय पूर्णिमा त्रिपाठी जी
ReplyDeleteनमस्कार .....
पर मत भूलो
की वर्तमान
कल का अतीत है
और समय
उसका साक्षी.
xxxx
जीवन सन्दर्भों को उद्घाटित करती कविता , एक सन्देश देती हुई ....शुक्रिया
पर मत भूलो
ReplyDeleteकी वर्तमान
कल का अतीत है
और समय
उसका साक्षी.
बिल्कुल यही सत्य है…………सुन्दर भावाव्यक्ति।
sundarta se satya ko udghatit karti rachna!
ReplyDeleteaabhar!
हम कितने कायर हैं
ReplyDeleteसह गए वो अन्याय
नि:सन्देह
एक सार्थक और प्रभावी रचना .....
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