जन - जन सुखी हो
भावना से भावना का द्वार हो,
न रहे अशिक्षित कोई जन
ज्ञान का विस्तार हो.
न हो कलुष मन में
सभी से प्रेम का व्यापार हो,
निज ज्ञान के चक्षु खुलें
यह जिंदगी का सार हो .
द्वेष मन में न रहे
नित सत्य का उपहार हो,
अधिकार दें अधिकार लें
यह जिंदगी का सार हो.
स्नेह करुणा से भरे
नयनों में नित आभार हो,
धोखा न हो निज कर्म में
न अहं का व्यवहार हो.
सम्मान दें सम्मान लें
यह जिंदगी का सार हो.
भीरुता न हो दिलों में
वीरता अभिसार हो
कोई न हो निर्बल दुखी
न दीनता पर मार हो,
प्यार दें और प्यार लें
यह जिंदगी का सार हो .
पूर्णिमा त्रिपाठी
Wednesday, December 1, 2010
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- PURNIMA BAJPAI TRIPATHI
- मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.
कोई न हो निर्बल दुखी
ReplyDeleteन दीनता पर मार हो,
प्यार दें और प्यार लें
यह जिंदगी का सार हो .
nice post
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteऐसा हो जाये धरती पे स्वर्ग हो जाये
सुन्दर कामना ..
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