Tuesday, November 30, 2010

आओ अनंत में चले

तुम कृष्ण बनकर
महानता का कार्य
करने की बातें करते हो,
और मैं राधा बन
राधा की विवशता
कातरता ,विरहाग्नि
महसूस करती हूँ ,
कृष्ण बनना आसन है.
कृष्ण बन राधा से
भूल जाने का,
मुक्त होने का वचन 
ले लेना आसान है. 
परन्तु राधा बन 
कृष्ण को भुलाना 
पूर्णतः असंभव है .
उतना ही, जितना तुम्हे 
मथुरा को छोड़ना
असंभव लगता है .
राधा की पीड़ा का 
अहसास तुम्हे हो न हो 
परन्तु कृष्ण की दुविधा का 
अनुमान मुझे पूरा है 
फिर क्या करे ? न तो 
तुम कृष्ण सम 
सर्व व्यापी हो 
और न मैं राधा सम
समाज में स्वीकृत,
आओ| फिर एक
 विचार करें और 
बना लें एक दूसरे को 
जीवन का लक्ष्य.
और पहुंचे ,उस 
ऊंचाई पर 
जहाँ हर बंधन 
से परे एक नया
 संसार प्रतीक्षा कर 
रहा होगा,जहाँ 
तेरे और मेरे 
सब अपने होंगे 
जहाँ स्पर्श का
 सुख न सही
विचारों का तालमेल 
स्नेहिल मन होगा 
जहाँ तुम्हारी सारी
 विवशताएँ दुख और दर्द
अच्छाई और बुराई 
सब मेरे होंगे 
और तुम निश्चिन्त 
व निष्काम हो 
फिर बनो एक बार 
कृष्ण और दो 
एक महान सन्देश 
आने वाले युग को 
और हमारा मिलन हो 
 अनंत के पार  .   

पूर्णिमा त्रिपाठी       

2 comments:

  1. प्रेम की बहुत बहुत सुन्दर अनुभुति
    प्रेममयी सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  2. आह ! इश्क़ की कौन सी मंज़िल है ये ?

    ReplyDelete

Search This Blog

Pages

My Blog List

Followers

About Me

My photo
मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.