Wednesday, April 9, 2025

 वाणी वंदना

मैं अज्ञानी ज्ञान भरो मां

मैं अबोध मेरी बांंह धरो मां

कंठ कोकिला अर्जन सर्जन,

की देवी तुम संग विहरो॥

त्रिभुवन पोषणि ज्ञान की देवी

मेरे सुर के संग विहरो,

शब्दों के मैं चित्र उकेरूं

उन चित्रों में रंग भरो॥


पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

8707225101

मुक्तक

  1

मैं शब्द-शब्द हारी, मैं शब्द-शब्द जीती।

जीवन की वादियों में, आकंठ मैं हूं रीती।

गर पास आओ मेरे सुन पाओ तो सुनो तुम,

कैसे सुनाऊं तुमको तन्हा मैं आपबीती॥

2

राम को जागीर अपनी मत कहो, राम तो सब में समाए हैं।

जर्रा जर्रा जम्बूदीपे भरतखंडे, राम तो हम सबके साये हैं।

राम के शुभ कर्म और रामत्व में रम धरा मर्यादित हुयी,

राम आदि अनंत हैं राम धुन हर सांस में सब में जगाये हैं॥

3

जब जब प्रेम को ठोकर लगती,तब तब आंसू आते हैं।

 आपऔर करीब आ जाते हैं,जब जब आंसू आते हैं।

अंतस की पावक में जलकर,हृदय अनल झुलसाती है,

सुरभि समीर न कुछ कर पाये,  बेकल मन कर जाते हैं॥


पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

8707225101



 

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Kanpur, Uttar Pradesh, India
मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.