मुक्तक
1
मैं शब्द-शब्द हारी, मैं शब्द-शब्द जीती।
जीवन की वादियों में, आकंठ मैं हूं रीती।
गर पास आओ मेरे सुन पाओ तो सुनो तुम,
कैसे सुनाऊं तुमको तन्हा मैं आपबीती॥
2
राम को जागीर अपनी मत कहो, राम तो सब में समाए हैं।
जर्रा जर्रा जम्बूदीपे भरतखंडे, राम तो हम सबके साये हैं।
राम के शुभ कर्म और रामत्व में रम धरा मर्यादित हुयी,
राम आदि अनंत हैं राम धुन हर सांस में सब में जगाये हैं॥
3
जब जब प्रेम को ठोकर लगती,तब तब आंसू आते हैं।
आपऔर करीब आ जाते हैं,जब जब आंसू आते हैं।
अंतस की पावक में जलकर,हृदय अनल झुलसाती है,
सुरभि समीर न कुछ कर पाये, बेकल मन कर जाते हैं॥
पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी
8707225101
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