Friday, September 30, 2022

 बो गया है नफरतें .....

 बो गया है नफरतें ये 

कौन दिल के खेत में,

हम महल बनवा रहे हैं

इस फिसलती रेत में॥

आग सी लगने लगी है

हर सुनहरे ख्वाब में

हम खड़े हैं आस रखे,

जमुन-गंग दोआब में॥

दे रहे आवाज़ सुन लो

मीठे जल से सींच लो,

अब भी मौका है कि सम्भलो

हाँथ अपने खींच लो॥

क्या किया उनके लिये 

आगत सवांरा ही नहीं,

कैसे वो फूले फलें

सोंचा विचारा ही नहीं॥

कुछ करो ऐसा करो कि 

नफरतें दिल हार दें

प्रेम से पूरित हृदय हों 

प्यार का उपहार दें॥

बो गया है नफरतें ये 

कौन दिल के खेत में,

हम महल बनवा रहे हैं

इस फिसलती रेत में॥


पूर्णिमा बाजपेयी त्रिपाठी

109/191 जवाहर नगर कानपुर 208012

8707225101

Friday, April 15, 2022

तन रंग मन रंग  रंग रंग रंग रंग 

तन रंग मन रंग  रंग रंग रंग रंग 

आंगन का हर कोना है,

जीवन के इस सांझ पहर में 

अनुभव का रंग दूना है॥

तन रंग मन रंग

कुछ कच्चे रंग कुछ पक्के रंग

कुछ झूठे रंग कुछ सच्चे रंग,

कुछ शर्माये कुछ घबराये 

कुछ बौराये कुछ अलसाये ।

रंग ही रंग सलोना है॥

तन रंग मन रंग….

सतरंगी सपनों के सतरंग

मुक्त पवन की चाल के हर रंग,

देहरी और दुआर के हर रंग,

छप्पर और पुआल के हर रंग।

रंग ही रंग बिछौना है॥

तन रंग मन रंग….

अम्मा की उम्मीदों का रंग 

बाबू की मेहनत का हर रंग

रंग रंग रंग रंग जीवन को रंग, 

जीव तू एक खिलौना है।

तन रंग मन रंग

पूर्णिमा बाजपेयी त्रिपाठी

109/191 ए, जवाहर नगर कानपुर

8707225101


Monday, January 3, 2022

विवशता

 मैं मां से मिलकर लौट रही थी मन मे भावनाओं का ज्वार उठ रहा था. पूरे  रास्ते एक द्वंद चलता रहा कब आटो वाले ने मंजिल पर ला खडा किया पता ही नहीं चला. मैडम उतरिये घूरेश्वर मंदिर आ गया. विचारों की श्रंखला में विराम लगा आजकल आटो वालों ने भी संबोधन मे तरक्की कर ली है बहन जी के स्थान पर मैडम को रिप्लेस कर दिया है. मैंने आटो वाले को पैसे देकर सामान निकाला बैग कुछ ज्यादा ही भारी हो गये थे मां की ममता पोटली दर पोटली वजन बढ़ा रही थी.मैने दर्वाजे पर पहुंच कर बेल दबाई मेरे दस वर्षीय पुत्र ने उछलते कूदते हुये बाल सुलभ चंचलता के साथ दरवाजा खोला.तेज नजरों से इंक्वारी करते हुये मेरे हाथ से बैग लेने का असफल प्रयास करते हुये बोला बहुत भारी है मां आपने इसमें पथ्थर भर रखे हैं क्या? नानू ने मेरे लिये क्या दिया? तब तक मेरी सासू मां और पतिदेव भी बैठक में पहुंच गये. काहे दुल्हिन अम्मा कैसी हैं तुम्हरी बचिहैं कि न बचिहैं राम जी रगड़ावैं न नहीं त बहुतय दुर्दशा हुई जहिहै.पतिदेव भी प्रश्नवाचक नजरों से देख रहे थे.मेरी आंखों के सामने मां का मुर्झाया पर उम्मीद भरा चेहरा घूम गया. उनकी थकी सी आवाज मेरे कानों में गूंज रही थी बिटिया इ सालिगराम, इ आशा मईया, इ कुड़हा मईया की बटिया अपने साथै लेत जैव इनमा पुरखन का आशीर्वाद और विश्वास है. तुम्हरी भौजाइ कहत रही इन गोल-गोल पथ्थरों की क्या जरूरत है अम्मा जी ज्वेलरी और फिक्स डिपाजिट हो तो बता दीजिये ताकि हम अभी से अरेंज करना शुरू कर दें अम्मा विवश और निशब्द. मेरे हाथ पीतल के कटोरदान मे रखी बटिया सहला रहे थे.


पूर्णिमा बाजपेयी त्रिपाठी

109/191 A, जवाहर नगर कानपुर

मो. 8707225101

कामकाजी औरत

वो कामकाजी औरत है घर और समाज में समानता का बोझ अपने कंधे पर उठाये स्कूल ,दफ्तर, और समाज  में अपनी  प्रतिभा बिखेरती है. कुछ गलत होता देख बोलने को मुंह खोलती है उसके कानों में शब्द पड़ते हैं जादा ज्ञान पाड़े न बनो पता है बहुत पढ़ी लिखी हो लेकिन अपनी औकात मे रहो. वो सोंचने लगती है मां ने कहा था, शिक्षिका ने भी कहा था पढ़ने लिखने से नौकरी करने से औकात बदल जाती है. बदली क्या?   

पूर्णिमा बाजपेयी त्रिपाठी

109/191 A, जवाहर नगर कानपुर

मो. 8707225101

 

आओ मिलकर दिया जलाएं

 सत्य प्रेम करुणा से पूरित

कर्म और निष्ठा से सिंचित,

आओ मिल एक दिया जलाएं

अंधियारे को दूर भगाएं।

जीवन के झंझावातों में

चलते-चलते राह कंटीली,

उन राहों में पुष्प खिलाएं।

सबकी राहें सुगम बनाएं

आओ मिल एक दिया जलाएं।

एक दिया मां के सपूत को

जिससे जननी जन्मभूमि है,

एक दिया उन देवदूत को ,

लौट के फिर जो घर ना आये

आओ मिल एक दिया जलाएं।

एक दिया उस कर्मवीर को

जो धन-धान्य धरा में भर दे

खेतों में लहराएं बाली,

झूम-झूम कर पौधे फल दें।

अंतस का अंधियार मिटाएं

आओ मिल एक दिया जलाएं।

एक दिया शिक्षा का प्रज्ज्वल

नयी-नयी तकनीकों का बल,

एक दिया समरसता का हो

विश्वगुरू भारत बन जाए

आओ मिल एक दिया जलाएं।

एक दिया मेरे हिस्से का

गैर बराबरी के किस्से का

अब तो करो बराबर भाई,

क्यों तुम अपने औमै पराई

बेटी की पीड़ा चिल्लाई।

अपनेपन का दिया जलाएं

आओ मिल एक दिया जलाएं।

अपने लिये जिया है हर क्षण,

परहित श्वास-श्वास का लेखा

जी लें तो फिर जश्न मनाएं।

विश्व रूप राघव की धरती

आशा जहां कुलाचें भरती,

इस धरती को स्वर्ग बनाएं

आओ मिल एक दिया जलाएं।

 

पूर्णिमा त्रिपाठी

109/191 A

जवाहर नगर कानपुर 208012 

मो. 8707225101

 

 

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मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.