वो कामकाजी औरत है घर और समाज में समानता
का बोझ अपने कंधे पर उठाये स्कूल ,दफ्तर, और समाज में अपनी प्रतिभा बिखेरती है. कुछ गलत होता देख बोलने को मुंह खोलती है उसके
कानों में शब्द पड़ते हैं जादा ज्ञान पाड़े न बनो पता है बहुत पढ़ी लिखी हो लेकिन
अपनी औकात मे रहो. वो सोंचने लगती है मां ने कहा था,
शिक्षिका ने भी कहा था पढ़ने लिखने से नौकरी करने से औकात बदल जाती है. बदली क्या?
पूर्णिमा बाजपेयी त्रिपाठी
109/191 A, जवाहर नगर कानपुर
मो. 8707225101
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