कंधे जिनके सिंहों से
चौड़ी है जिनकी छाती,
वतन सुरक्षा के हित
आती है जब पाती॥
सारा ममत्व लेकर
मां धैर्य को जगाती,
उन्नत ललाट पर तिलक
विजयश्री का लगाती॥
उम्मीदें और आशाएं
प्यार से समझाती,
देती विदायी हंसकर
आशीष भी लुटाती॥
वीर सिपाही की मां
अपने अश्रु छिपाती,
वीर प्रसूता जननी
शौर्य त्याग समझाती॥
जिनकी ललकारों के आगे
हैं, शत्रुगण घबराते,
मां की धानी चूनर में
तारों की किरन लगाते॥
एक एक तृण का ऋण
लौटाने को उमगाते,
भारत के बेटे हैं ये
भारत का मान बढ़ाते॥
पूर्णिमा त्रिपाठी, बाजपेयी
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