Wednesday, November 12, 2025
Saturday, August 16, 2025
मां भारती मां सरस्वती
मां भारती मां सरस्वती
हे शारदा हंस वाहिनी,
दे ज्ञान चक्षु बनाओ ज्ञानी
मन क्लेश हरो वरदायिनी।।
वागेश्वरी मति गति सुधारो
चित्रांबरा वीणा को धारो,
कंठ में बसे वेद चारों
करके कृपा हमको उबारो।।
भुवनेश्वरी हे चंद्रकांति
श्वेत कमला धवल वसना
हे विशालाक्षी जी धारो।।
मातु ममता का पिटारा
खोल आशीषों को वारो,
ब्रम्हजाया जगत जननी
भर ज्ञान की अंजुरी वारो।।
महाभागे कमल लोचनि
हर के जड़मति हमको तारो,
सुरपूजिता हे पद्मनिलया
मैं हूं अकिंचन अंश तेरा
कौमुदी,दृष्टि मेरी ओर डारो।।
पूर्णिमा त्रिपाठी, बाजपेयी
8707225101
Thursday, August 7, 2025
हरे कांच की चूड़ियां
आज फिर उसने अपने वार्डरोब से सुंदर,चटकीले हरे रंग की साड़ी निकाली और बहुत ही सुघड़ता से तैयार होकर ड्रेसिंगटेबल के आदमकद शीशे के सामने खड़े होकर खुद को निहारा।अचानक उसकी नज़र अपने सूने हाँथों पर गयी उसने झट से बैंगलबाक्स से सम्हाल कर रखी गयी पुरानी कामदार हरी चूड़ियां निकाल कर पहन लीं। अतीत के तमाम चलचित्र उसकी सजल आंखों में तैर गये। ये उसकी मां की दी हुयी अनुपम और अंतिम सावनी थी जिसे वो साल दर साल जीती है।क्योंकि अब मां-मायका और मन इन्हीं हरी कामदार चूड़ियों में समा गया है।
पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी
109/191ए’ जवाहर
नगर कानपुर
8707225101
Tuesday, June 24, 2025
कंधे जिनके सिंहों से
चौड़ी है जिनकी छाती,
वतन सुरक्षा के हित
आती है जब पाती॥
सारा ममत्व लेकर
मां धैर्य को जगाती,
उन्नत ललाट पर तिलक
विजयश्री का लगाती॥
उम्मीदें और आशाएं
प्यार से समझाती,
देती विदायी हंसकर
आशीष भी लुटाती॥
वीर सिपाही की मां
अपने अश्रु छिपाती,
वीर प्रसूता जननी
शौर्य त्याग समझाती॥
जिनकी ललकारों के आगे
हैं, शत्रुगण घबराते,
मां की धानी चूनर में
तारों की किरन लगाते॥
एक एक तृण का ऋण
लौटाने को उमगाते,
भारत के बेटे हैं ये
भारत का मान बढ़ाते॥
पूर्णिमा त्रिपाठी, बाजपेयी
8707225101
Wednesday, April 9, 2025
मुक्तक
1
मैं शब्द-शब्द हारी, मैं शब्द-शब्द जीती।
जीवन की वादियों में, आकंठ मैं हूं रीती।
गर पास आओ मेरे सुन पाओ तो सुनो तुम,
कैसे सुनाऊं तुमको तन्हा मैं आपबीती॥
2
राम को जागीर अपनी मत कहो, राम तो सब में समाए हैं।
जर्रा जर्रा जम्बूदीपे भरतखंडे, राम तो हम सबके साये हैं।
राम के शुभ कर्म और रामत्व में रम धरा मर्यादित हुयी,
राम आदि अनंत हैं राम धुन हर सांस में सब में जगाये हैं॥
3
जब जब प्रेम को ठोकर लगती,तब तब आंसू आते हैं।
आपऔर करीब आ जाते हैं,जब जब आंसू आते हैं।
अंतस की पावक में जलकर,हृदय अनल झुलसाती है,
सुरभि समीर न कुछ कर पाये, बेकल मन कर जाते हैं॥
पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी
8707225101
Tuesday, March 11, 2025
होली गीत
अबके होली मैं पिया की हो, ली
टेसू गुलाल लगावत रसिया,
अंग लग्यो अंतर मन बसिया,
भीग गयो मेरा दामन चोली।
अबके होली मैं पिया की हो, ली।।
बचपन की सखियां और हमजोली
सब संग खेली होली अलबेली,
अबके होली मैं पिया की हो, ली।।
लाल, गुलाबी,नीला,पीला
अमलतास जैसा चटकीला,
दहके पलाश, ज्यों दहके तन मन
कोरा आंचल कर दिया गीला।।
प्रिय से रंगों की बात करूंगी
कुछ रंगों से ख़्वाब बुनूगी,
अनजाने रिश्तों में रंगकर
उन रिश्तों में रंग भरूंगी।।
जीवन की बगिया में चटकें
सुर्ख गुलाबों की जब कलियां,
मैं रंग दूंगी प्रेम गली की
साजन के मन की सब गलियां।।
हिरणी जैसे चपल दृग में
काजल का काला रंग सोहे,
मस्तक सुर्ख सिंदूरी सूरज
आनन की आभा मन मोहे।।
मैं खेलूं प्रीतम संग होली
अबके होली मैं पिया की हो, ली।।
कर पकड़े और बांह मरोड़ी
लाज का रंग मैं छिपा न पाई
ऐसा हो गया मुखड़ा मेरा
जैसे दूध में केसर घोली
अबके होली मैं पिया की हो, ली।।
पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेई
मोबाइल नंबर: 8707225101
Wednesday, February 19, 2025
बेटियां तो प्यार हैं
सृष्टि का अंग आधा
पार करें द्वंद बाधा,
पृकति ने रचा जिसे
बांध प्रेम सार है।
इसिलिये तो बेटियां
सृष्टा और सृष्टि का
प्यारा दुलार हैं॥
सूने घर आंगन में
नूपुर की रुनझुन में,
ठुमक ठुमक पग धरें
घर को घर बना रहीं।
इसीलिये तो बेटियां
सृष्टा और सृष्टि का
सुंदर श्रंगार हैं॥
मां की नखरों नाज़ हैं
पिता के सर का ताज हैं,
वीरन की कलाई में
बंधा अभिमान हैं।
इसीलिये तो बेटियां
सृष्टा और सृष्टि का
अनुपम उपहार हैं॥
सरल सुघड़ चातक सी
देख रहीं आनन को,
खिलखिलाते तरुवर ज्यों
शोभित हों कानन को।
नेह वृष्टि करके सृष्टि
सपने सजा रहीं,
इसीलिये तो बेटियां
सृष्टा और सृष्टि की
रचना का आधार हैं॥
नव पल्लव खिल रहे
कुसुमित हो झूम के,
आदि और अनंत दोनों
संग संग रंग भरें
झुर्मुट में प्यार के।
इसीलिये तो बेटियां
सृष्टा और सृष्टि का
पूरा संसार हैं॥
पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी
109/191 ए’
जवाहर नगर कानपुर
8707225101
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- PURNIMA BAJPAI TRIPATHI
- Kanpur, Uttar Pradesh, India
- मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.