Thursday, November 25, 2010

मुखौटे

चेहरे पर लगे मुखौटे
जीवन की वास्तविकता
से परे जीवन को
बोझिल बना देते है.
बरसती आँखों पर
ख़ुशी का मुखौटा
सहमें होठों पर
हंसी का मुखौटा
जीने का अंदाज
बयाँ करने वाले
जीने के अंदाज का
दोहरा मुखौटा.
कब तक मुखौटे
के सहारे जिंदगी
बिताओगे ?
कही न कहीं
मात खाओगे.
एक बार सिर्फ
एक पल के लिए
सारे मुखौटे  उतार
उस पल को जियो,
पाओगे जिंदगी
बहुत अपनी है .
मुखौटे के सहारे
जीवन के पल
गुजारे जा सकते है
आत्मा से परे मन से दूर
जिए नहीं जा सकते .
मुखौटे हकीक़त नहीं
 एक आवरण भर हैं 
आवरण कभी भी हट सकता है . 

पूर्णिमा त्रिपाठी

1 comment:

  1. कब तक मुखौटे
    के सहारे जिंदगी
    बिताओगे ?
    कही न कहीं
    मात खाओगे.//

    मुखौटे हकीक़त नहीं
    एक आवरण भर हैं
    आवरण कभी भी हट सकता है

    सच कहाँ पूर्णिमा जी आपने, इतनी सच्ची और खरी बात इतने सरल शब्दों में कह डाली आपने. मुखौटों के सहारे ज़िंदगी नहीं जी जाती.

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मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.