Wednesday, April 9, 2025

मुक्तक

  1

मैं शब्द-शब्द हारी, मैं शब्द-शब्द जीती।

जीवन की वादियों में, आकंठ मैं हूं रीती।

गर पास आओ मेरे सुन पाओ तो सुनो तुम,

कैसे सुनाऊं तुमको तन्हा मैं आपबीती॥

2

राम को जागीर अपनी मत कहो, राम तो सब में समाए हैं।

जर्रा जर्रा जम्बूदीपे भरतखंडे, राम तो हम सबके साये हैं।

राम के शुभ कर्म और रामत्व में रम धरा मर्यादित हुयी,

राम आदि अनंत हैं राम धुन हर सांस में सब में जगाये हैं॥

3

जब जब प्रेम को ठोकर लगती,तब तब आंसू आते हैं।

 आपऔर करीब आ जाते हैं,जब जब आंसू आते हैं।

अंतस की पावक में जलकर,हृदय अनल झुलसाती है,

सुरभि समीर न कुछ कर पाये,  बेकल मन कर जाते हैं॥


पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

8707225101



 

Tuesday, March 11, 2025

 होली गीत

अबके होली मैं पिया की हो, ली

टेसू गुलाल लगावत रसिया,

अंग लग्यो अंतर मन बसिया,

भीग गयो मेरा दामन चोली।

अबके होली मैं पिया की हो, ली।।

बचपन की सखियां और हमजोली

सब संग खेली होली अलबेली,

अबके होली मैं पिया की हो, ली।।

लाल, गुलाबी,नीला,पीला

अमलतास जैसा चटकीला,

दहके पलाश, ज्यों दहके तन मन

कोरा आंचल कर दिया गीला।।

प्रिय से रंगों की बात करूंगी

कुछ रंगों से ख़्वाब बुनूगी,

अनजाने रिश्तों में रंगकर

उन रिश्तों में रंग भरूंगी।।

जीवन की बगिया में चटकें

सुर्ख गुलाबों की जब कलियां,

मैं रंग दूंगी प्रेम गली की

साजन के मन की सब गलियां।।

हिरणी जैसे चपल दृग में

काजल का काला रंग सोहे,

मस्तक सुर्ख सिंदूरी सूरज

आनन की आभा मन मोहे।।

मैं खेलूं प्रीतम संग होली

अबके होली मैं पिया की हो, ली।।

कर पकड़े और बांह मरोड़ी

लाज का रंग मैं छिपा न पाई

ऐसा हो गया मुखड़ा मेरा

जैसे दूध में केसर घोली

अबके होली मैं पिया की हो, ली।।


पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेई

मोबाइल नंबर: 8707225101

Wednesday, February 19, 2025

 

बेटियां तो प्यार हैं

सृष्टि का अंग आधा

पार करें द्वंद बाधा,

पृकति ने रचा जिसे

बांध प्रेम सार है।

इसिलिये तो बेटियां

सृष्टा और सृष्टि का

प्यारा दुलार हैं॥

सूने घर आंगन में

नूपुर की रुनझुन में,

ठुमक ठुमक पग धरें

घर को घर बना रहीं।

इसीलिये तो बेटियां

सृष्टा और सृष्टि का

सुंदर श्रंगार हैं॥

मां की नखरों नाज़ हैं

पिता के सर का ताज हैं,

वीरन की कलाई में

बंधा अभिमान हैं।

इसीलिये तो बेटियां

सृष्टा और सृष्टि का

अनुपम उपहार हैं॥

सरल सुघड़ चातक सी

देख रहीं आनन को,

खिलखिलाते तरुवर ज्यों

शोभित हों कानन को।

नेह वृष्टि करके सृष्टि

सपने सजा रहीं,

इसीलिये तो बेटियां

सृष्टा और सृष्टि की

रचना का आधार हैं॥

नव पल्लव खिल रहे

कुसुमित हो झूम के,

आदि और अनंत दोनों

संग संग रंग भरें

झुर्मुट में प्यार के।

इसीलिये तो बेटियां

सृष्टा और सृष्टि का

पूरा संसार हैं॥

 

पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

109/191 ए जवाहर नगर कानपुर

8707225101

 

 

Sunday, July 21, 2024

 काल पर्वत 

फिर काल पर्वत का 

एक शिलाखंड

टूट कर बिखर गया।

कोई,

धीरे से आया

और चुपके से गुज़र गया।

अतीत हो गये हैं,

उसके पावों के निशान।

हम अतीत से 

मुक्त होकर,

आराधना करें वर्तमान की,

जिनका वर्तमान पर ध्यान है

उनका भविष्य भी महान है।

देखते - देखते 

समय रथ ओझल हो जाता है,

और अवसर की प्रतीक्षा में

अवसर

हांथ से निकल जाता है।

हर क्षण महनीय है,

एक अवसर है 

बीज बोने का।

आओ,

हम बीज बोएं 

निर्माण के।

खत्म हो

अंधेरे का वर्चस्व

विहान हो।

और सिर्फ 

सृजन हो,

उत्थान हो,

कल्याण हो॥

पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

109/191ए' जवाहर नगर कानपुर

मो.   8707225101

Monday, February 12, 2024

 नमः वीणा धारिणी

नमः वीणा धारिणी

दुख कलेश निवारिणी,

मेरे सारे पातक हर लो

मेरे मन मंदिर को वर लो॥

मातु तुम्हारी अनुपम गाथा

सुनकर सभी झुकाएं माथा,

मेरी वाणी लेखनी बनो तुम

मेरी बनाओ छवि अनूपम्॥

दे दे मां मुझको तू सहारा

मांगूं तुझसे ज्ञान पिटारा,

विद्द्या की मां हो अधिष्ठात्री

दुर्गा तुम हो तुम्ही हो गायत्री॥


पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

109/191ए, जवाहर नगर कानपुर

मो. 8707225101

Monday, January 15, 2024

 

राम तुम आधार हो

राम तुम आधार हो

राम तुम व्यवहार हो,

तुम अहिल्या की प्रतीक्षा

शबरी के सत्कार हो॥

जिंदगी की हर प्लावन का

राम तुम तटबंध हो,

मन का मन से हो मिलन

तुम वह सुखद अनुबंध हो॥

राम तुम अभिमान हो

उच्चतम प्रतिमान हो,

संस्कारों की बही के

तुम सुखद गुणगान हो॥

कल्पना कह कर तुम्हें

हम दूर कर सकते नहीं,

हम तुम्हारे अंश हैं

तुम हमारे प्राण हो॥

राम तुम अभिमान हो

उच्चतम प्रतिमान हो।।


पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेई

109/164 जवाहर नगर कानपुर

Tuesday, September 12, 2023

 

सारे जहां से न्यारी किताबें

किताबों की दुनियां

बड़ी ही सजीली बड़ी ही रंगीली,

निर्जन हृदय में हम सबके मन में

मीठा सा रस घोलती हैं किताबें॥

दादी औ नानी की प्यारी कहानी

सपनों के राजा औ परियों की रानी,

सबकी कहानी सबकी ज़ुबानी

खुद में समेटे सुनाती किताबें॥

दुनियां का विज्ञान दर्शन समेटे

दुनियां को दुनियां बनाती किताबें॥

हारे पलों मे थक कर जो बैठे

कुछ मीठे बैना सुनाती किताबें,

सबको लुभाती प्यारी किताबें

सारे जहां से प्यारी किताबें

सारे जहां से न्यारी किताबें॥

 

पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

109/191ए, जवाहर नगर कानपुर

 मो. नं 8707225101

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Kanpur, Uttar Pradesh, India
मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.