Sunday, March 14, 2010

यादों के धुंधले साए में

यादों  के  धुंधले  साये  


पीछा  करते  हैं .


वक़्त  गुजरता  जाता  हैं,


पर  अहसास  की  डोरी  थामे


भविष्य   के  उजालों   में  भूत 


के  अंधेरों   का  डर,


मन  को  कमजोर   करता  हैं.


रामरती  की  आहें ,


भोलू   काका  की  मजबूरी ,


चंपा  भौजी  की  व्याकुलता ,


रन्नो  की  पहाड़   सी  जवानी,


नंदू  भैया  की  बेरोजगारी ,


कुछ  सुलगते  हुए  सवाल ?


अधूरे  ठन्डे  से  जवाब.


आम  आदमी  के  जीवन  का  रहस्य


अनदेखा  अनकहा  भविष्य


कब  पिघलेगा  सूनी 


आँखों  का  नीर


कब  कटेगा कोहरा


हटेगी  पीर .


खाली खाली आँखों   में


सजेंगे  सुनहरे  ख्वाब,


तब  बोलेंगे  हम  होंगे  कामयाब .

1 comment:

  1. यादों के धुंधले साये
    पीछा करते हैं .
    वक़्त गुजरता जाता हैं,

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.