Monday, March 8, 2010

ढाई आखर

कबीर  के   ढाई  आखर  

और  यह  कहना  की

प्रेम  न  बाड़ी   उपजे

प्रेम  न  हाट  बिकाय

सत्य  ही  है .

क्योंकि  इसके  लिए  तो

हृदय  की  उर्वर  जमीन

और  भावनाओ  संवेदनाओ

का  बीज  चाहिए.

भावनाए  जो  चिटक  कर

बिखरती  है  तो

जोडती  है  दो  तारों   को,

जिनको  कसने  से  गूँज

उठता  है   मधुर  संगीत

और  जाग  जाते  हैं

सुप्त  इंसान .

संवेदनाएं  जब  उभरती  है

तो  परिचित  कराती  हैं

मानव  को  मनुष्यत्व  से,

और  भगाती   हैं  कुंठाएं

बनाती  है  महान.

    
पूर्णिमा बाजपेयी त्रिपाठी

1 comment:

  1. संवेदनाएं जब उभरती है
    तो परिचित कराती हैं
    मानव को मनुष्यत्व से,
    और भगाती हैं कुंठाएं
    बनाती है महान.


    लाजवाब पंक्तियाँ
    ..............

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मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.