अंतरास्ट्रीय महिला दिवस पर
बीज को चाहिए
पनपने के लिए
उर्वर जमीन
पुष्पित पल्लवित
होने के लिए
खाद और पानी
तुम धरा हो ,
तुम धरा हो ,
स्रष्टि का आधा अंग
अपने अस्तित्व को पहचानो ,
हुंकार कर कहो
तुम्हे दैवीय
परिभाषाएं नहीं ,
स्त्रीत्व का अभिमान चाहिए ,
लोक लाज और समाज
सबने दिया है
एक अवगुंठन
जिसके अन्धेरें
तुम्हारे होने को
बनाते है एक प्रश्न
और तुम लज्जा को
आभूषण बना
चुकती रहती हो तब तक
जब तक तुम्हारे हाड़ मास से ,
लहू की एक - एक बूँद
तुम्हारे अरमानो का
एक एक कतरा ,
तुम्हारी भावनाओं
के समंदर का
अगाध स्नेह
ख़ाली न हो जाए
क्या तुम नहीं जानती ?
की तुम स्वयंसिद्धा हो ,
तुम्हारी एक हाँ और ना
पर टिका है ,
स्रष्टि का भविष्य .
फिर तुम क्यों ?
बेबसी और लाचारी की
प्रतिमूर्ति बन
आँखों में,
याचना का भाव लिए
भटकती हो वहां ,
जहां सूखा ,
सिर्फ सूखा श्रोत है
जो खुद प्यासा है ,
तुम्हे क्या पिलाएगा
झटक कर खड़ी हो ,
अपने पावों पर ,
स्वयं को पहचानों
क्योंकि तुम एक स्तम्भ हो
इस स्रष्टि के ,
समूल परिवर्तन का
पूर्णिमा त्रिपाठी .
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमहिला दिवस की शुभकामनायें
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