Wednesday, November 12, 2025

 उजास


"मैं हूं अपने बाबूजी की बिब्बो" दमदार खनकती पर सधी हुई आवाज इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय के सीनेट हाल में गूंज उठी। विवेचना धर शास्त्री डायस पर खड़े होकर स्नातक हुए विद्यार्थियों को संबोधित कर रही है। छरहरा इकहरा बदन, लंबा कद खादी सिल्क की धूमिल श्वेत रंग की साड़ी लंबे बालों का जूड़ा, उसमें करीने से लगा गुलाब का फूल और माथे पर दमकते सूरज के आकार की बिंदी। भारतीयता की चलती फिरती मिसाल कंठ में मां सरस्वती मानो साक्षात विराजती हों। अचानक एक पत्रकार का विनम्र स्वर में सवाल उसे अतीत के घेरे में ले गया। पत्रकार पूँछ रहा था मैडम आप अपना उद्बोधन इसी पंक्ति से क्यों आरंभ करती हैं यह सुनकर उसकी आंखों में अपने गाँव उडंगाखेड़ा से लेकर कैंब्रिज के सीनेट हॉल तक का सफर तिर गया जो उसकी आत्मा और शरीर दोनों को लहू - लुहान करने वाला रहा। नन्ही सी बिब्बो! तीन वर्ष की उम्र में इलाज के अभाव में माता चल बसी। पंडित गदाधर शास्त्री पुरोहिताई से अपना जीवन- यापन बड़ी शांति और संतोष के साथ कर रहे थे कि अचानक काल का यह वज्रपात उन्हें अंदर तक हिला गया। उनके सामने मासूम बिब्बो की परवरिश एक चुनौती के रूप में मुँह बाये खड़ी थी। खेड़े के बड़े बुजुर्गों ने दूसरे विवाह का हवाला दिया।कुछ ने तो त्रयोदशा: का भी इंतजार नहीं किया और फलाने की बिटिया फलाने की भतीजी का नाम सुझाने लगे। पर,शास्त्री जी को बिब्बो के अलावा अब कुछ भी नहीं सूझ रहा था। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि अपनी फूल सी बेटी को विमाता का संत्रास नहीं देंगे।धीरे-धीरे समय बीता सहानुभूति दर्शाने वाले अपने-अपने कोटरो में सिमट गए, पिता पुत्री अकेले रह गए एक दूसरे का मौन समझने के लिए। जीवन नैया हिचकोले खाकर आगे बढ़ रही थी कि तभी खेड़ा में तूफान सा आ गया पंडित गदाधर शास्त्री ने फैसला लिया कि बिब्बो को खेड़ा से दूर शहर में भेज कर पढ़ाने का, गांव के बुजुर्गों की आपात बैठक हुई पंडित जी की बहुत लानत- मलानत हुई। मुखिया जी तल्ख़ लहज़े में बोले थे गांव का उसूल तोड़ रहे हो पंडित,अभी तक कोई बेटी गांव के स्कूल से आगे नहीं गई है। लेकिन अपनी मेधावी बिटिया की मेधा समझ चुके पिता ने किसी की नहीं सुनी। गांव वालों ने उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया दबंगों ने उन्हें पूजा पाठ के लिए ना बुलाने का फरमान जारी कर दिया और बाकी सब दबंगों के डर से दूर हो चले। पंडित जी को अगल-बगल के गांव से जो भी मिलता उसी को संतोष से अपना भाग्य समझकर ग्रहण करते। समय बीता विवेचना धर शास्त्री ने इंटर की परीक्षा में जिले में टॉप किया था। दबंगों के मुह थोड़े सिकुड़ गए, वह आते जाते कानों में फ़बतियाँ कसते "करैं का तो चौका बासनय है वोखे ख़ातिर इतना पढ़य की का जरूरत है"। बाबूजी बिना किसी प्रतिक्रिया के आगे बढ़ जाते। बिब्बो ने बी.ए.,एम.ए., पी.एच.डी.और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन हर जगह अव्वल। जब जब वह प्रथम पंक्ति में खड़ी हुई उसका संकल्प दृढ़ होता गया, और उसके बाबूजी की आंखों का वात्सल्य गहराता गया। आज बाबूजी नहीं है पर, उनके द्वारा किया गया उजास उसकी आभा को देदीप्यमान कर रहा है और अनगिनत बिब्बो उस उजास की किरण से चमक रहीं हैं। सोचते सोचते उसकी आंखें अपने बाबूजी के लिए कृतज्ञता से छलक उठी।

Saturday, August 16, 2025

मां भारती मां सरस्वती 

 मां भारती मां सरस्वती 

हे शारदा हंस वाहिनी, 

दे ज्ञान चक्षु बनाओ ज्ञानी 

मन क्लेश हरो वरदायिनी।। 

वागेश्वरी मति गति सुधारो

चित्रांबरा वीणा को धारो,  

कंठ में बसे वेद चारों 

करके कृपा हमको उबारो।।

भुवनेश्वरी हे चंद्रकांति 

श्वेत कमला धवल वसना

हे विशालाक्षी जी धारो।।

मातु ममता का पिटारा

खोल आशीषों को वारो,

ब्रम्हजाया जगत जननी

भर ज्ञान की अंजुरी वारो।।

महाभागे कमल लोचनि

हर के जड़मति हमको तारो,

सुरपूजिता हे पद्मनिलया

मैं हूं अकिंचन अंश तेरा

कौमुदी,दृष्टि मेरी ओर डारो।।


पूर्णिमा त्रिपाठी, बाजपेयी

8707225101

Thursday, August 7, 2025

 

हरे कांच की चूड़ियां

आज फिर उसने अपने वार्डरोब से सुंदर,चटकीले हरे रंग की साड़ी निकाली और बहुत ही सुघड़ता से तैयार होकर ड्रेसिंगटेबल के आदमकद शीशे के सामने खड़े होकर खुद को निहारा।अचानक उसकी नज़र अपने सूने हाँथों पर गयी उसने झट से बैंगलबाक्स से सम्हाल कर रखी गयी पुरानी कामदार हरी चूड़ियां निकाल कर पहन लीं। अतीत के तमाम चलचित्र उसकी सजल आंखों में तैर गये। ये उसकी मां की दी हुयी अनुपम और अंतिम सावनी थी जिसे वो साल दर साल जीती है।क्योंकि अब मां-मायका और मन इन्हीं हरी कामदार चूड़ियों में समा गया है।

पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

109/191ए जवाहर नगर कानपुर

8707225101

Tuesday, June 24, 2025

 ऊधौ का निर्गुण समेटे 

प्रेम के सब रस लपेटे

बांसुरी की तान पर, 

कृष्ण के आह्वान पर 

ब्रज नीलकंठी हो गया॥


पूर्णिमा त्रिपाठी, बाजपेयी

8707225101

 कंधे जिनके सिंहों से

चौड़ी है जिनकी छाती,

वतन सुरक्षा के हित

आती है जब पाती॥

सारा ममत्व लेकर

मां धैर्य को जगाती,

उन्नत ललाट पर तिलक

विजयश्री का लगाती॥

उम्मीदें और आशाएं

प्यार से समझाती,

देती विदायी हंसकर

आशीष भी लुटाती॥

वीर सिपाही की मां

अपने अश्रु छिपाती,

वीर प्रसूता जननी 

शौर्य त्याग समझाती॥

जिनकी ललकारों के आगे

हैं, शत्रुगण घबराते,

मां की धानी चूनर में

तारों की किरन लगाते॥

एक एक तृण का ऋण

लौटाने को उमगाते,

भारत के बेटे हैं ये 

भारत का मान बढ़ाते॥


पूर्णिमा त्रिपाठी, बाजपेयी

8707225101



 सदियों की आराधना 

और साधना पूरी हुयी

आ रहे रघुकुल शिरोमणि

आ रहे.......

सुभग,सुंदर,सुखद शीतल 

गीत मंगल गा रहे

आ रहे.......

सज गये हैं द्वार चौखट

कुंज गलियारे सजे

सज गयीं अट्टालिकाएं

घर के चौबारे सजे

भावना कर्तव्य निष्ठा

के समर्पण आ रहे

आ रहे........


पूर्णिमा त्रिपाठी, बाजपेयी

8707225101

 गुरू ज्ञान है


गुरू ज्ञान है

गुरू ज्ञान है, गुरू मान है

गुरू शब्द ही महान है,

गुरू आत्मा परमात्मा

गुरू मनुज का अभिमान है॥

गुरू ज्ञान है

गुरू गीत है गुरू मीत है

गुरू नीति है गुरू रीति है,

गुरू सम्पदा है ज्ञान की 

गुरू सद्गुणों की प्रीत है॥


पूर्णिमा त्रिपाठी,बाजपेयी 

8707225101

Search This Blog

Pages

My Blog List

Followers

Blog Archive

About Me

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh, India
मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.