Saturday, August 16, 2025

मां भारती मां सरस्वती 

 मां भारती मां सरस्वती 

हे शारदा हंस वाहिनी, 

दे ज्ञान चक्षु बनाओ ज्ञानी 

मन क्लेश हरो वरदायिनी।। 

वागेश्वरी मति गति सुधारो

चित्रांबरा वीणा को धारो,  

कंठ में बसे वेद चारों 

करके कृपा हमको उबारो।।

भुवनेश्वरी हे चंद्रकांति 

श्वेत कमला धवल वसना

हे विशालाक्षी जी धारो।।

मातु ममता का पिटारा

खोल आशीषों को वारो,

ब्रम्हजाया जगत जननी

भर ज्ञान की अंजुरी वारो।।

महाभागे कमल लोचनि

हर के जड़मति हमको तारो,

सुरपूजिता हे पद्मनिलया

मैं हूं अकिंचन अंश तेरा

कौमुदी,दृष्टि मेरी ओर डारो।।


पूर्णिमा त्रिपाठी, बाजपेयी

8707225101

Thursday, August 7, 2025

 

हरे कांच की चूड़ियां

आज फिर उसने अपने वार्डरोब से सुंदर,चटकीले हरे रंग की साड़ी निकाली और बहुत ही सुघड़ता से तैयार होकर ड्रेसिंगटेबल के आदमकद शीशे के सामने खड़े होकर खुद को निहारा।अचानक उसकी नज़र अपने सूने हाँथों पर गयी उसने झट से बैंगलबाक्स से सम्हाल कर रखी गयी पुरानी कामदार हरी चूड़ियां निकाल कर पहन लीं। अतीत के तमाम चलचित्र उसकी सजल आंखों में तैर गये। ये उसकी मां की दी हुयी अनुपम और अंतिम सावनी थी जिसे वो साल दर साल जीती है।क्योंकि अब मां-मायका और मन इन्हीं हरी कामदार चूड़ियों में समा गया है।

पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

109/191ए जवाहर नगर कानपुर

8707225101

Tuesday, June 24, 2025

 ऊधौ का निर्गुण समेटे 

प्रेम के सब रस लपेटे

बांसुरी की तान पर, 

कृष्ण के आह्वान पर 

ब्रज नीलकंठी हो गया॥


पूर्णिमा त्रिपाठी, बाजपेयी

8707225101

 कंधे जिनके सिंहों से

चौड़ी है जिनकी छाती,

वतन सुरक्षा के हित

आती है जब पाती॥

सारा ममत्व लेकर

मां धैर्य को जगाती,

उन्नत ललाट पर तिलक

विजयश्री का लगाती॥

उम्मीदें और आशाएं

प्यार से समझाती,

देती विदायी हंसकर

आशीष भी लुटाती॥

वीर सिपाही की मां

अपने अश्रु छिपाती,

वीर प्रसूता जननी 

शौर्य त्याग समझाती॥

जिनकी ललकारों के आगे

हैं, शत्रुगण घबराते,

मां की धानी चूनर में

तारों की किरन लगाते॥

एक एक तृण का ऋण

लौटाने को उमगाते,

भारत के बेटे हैं ये 

भारत का मान बढ़ाते॥


पूर्णिमा त्रिपाठी, बाजपेयी

8707225101



 सदियों की आराधना 

और साधना पूरी हुयी

आ रहे रघुकुल शिरोमणि

आ रहे.......

सुभग,सुंदर,सुखद शीतल 

गीत मंगल गा रहे

आ रहे.......

सज गये हैं द्वार चौखट

कुंज गलियारे सजे

सज गयीं अट्टालिकाएं

घर के चौबारे सजे

भावना कर्तव्य निष्ठा

के समर्पण आ रहे

आ रहे........


पूर्णिमा त्रिपाठी, बाजपेयी

8707225101

 गुरू ज्ञान है


गुरू ज्ञान है

गुरू ज्ञान है, गुरू मान है

गुरू शब्द ही महान है,

गुरू आत्मा परमात्मा

गुरू मनुज का अभिमान है॥

गुरू ज्ञान है

गुरू गीत है गुरू मीत है

गुरू नीति है गुरू रीति है,

गुरू सम्पदा है ज्ञान की 

गुरू सद्गुणों की प्रीत है॥


पूर्णिमा त्रिपाठी,बाजपेयी 

8707225101

Wednesday, April 9, 2025

 वाणी वंदना

मैं अज्ञानी ज्ञान भरो मां

मैं अबोध मेरी बांंह धरो मां

कंठ कोकिला अर्जन सर्जन,

की देवी तुम संग विहरो॥

त्रिभुवन पोषणि ज्ञान की देवी

मेरे सुर के संग विहरो,

शब्दों के मैं चित्र उकेरूं

उन चित्रों में रंग भरो॥


पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

8707225101

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Kanpur, Uttar Pradesh, India
मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.