वाणी वंदना
मैं अज्ञानी ज्ञान भरो मां
मैं अबोध मेरी बांंह धरो मां
कंठ कोकिला अर्जन सर्जन,
की देवी तुम संग विहरो॥
त्रिभुवन पोषणि ज्ञान की देवी
मेरे सुर के संग विहरो,
शब्दों के मैं चित्र उकेरूं
उन चित्रों में रंग भरो॥
पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी
8707225101