Tuesday, September 12, 2023

 

सारे जहां से न्यारी किताबें

किताबों की दुनियां

बड़ी ही सजीली बड़ी ही रंगीली,

निर्जन हृदय में हम सबके मन में

मीठा सा रस घोलती हैं किताबें॥

दादी औ नानी की प्यारी कहानी

सपनों के राजा औ परियों की रानी,

सबकी कहानी सबकी ज़ुबानी

खुद में समेटे सुनाती किताबें॥

दुनियां का विज्ञान दर्शन समेटे

दुनियां को दुनियां बनाती किताबें॥

हारे पलों मे थक कर जो बैठे

कुछ मीठे बैना सुनाती किताबें,

सबको लुभाती प्यारी किताबें

सारे जहां से प्यारी किताबें

सारे जहां से न्यारी किताबें॥

 

पूर्णिमा त्रिपाठी बाजपेयी

109/191ए, जवाहर नगर कानपुर

 मो. नं 8707225101

Thursday, April 27, 2023

 गंगा तुम कितना सहती हो......

नगरी-नगरी गांव-गांव

पर्वतों की छांव-छांव

तुम सदा बहती ही रहती हो,

गंगा तुम कितना सहती हो॥

आस हो तुम स्वांस  

तुम विश्वास हो 

जिंदगी की तंत्रिका में चल रही

हर स्वांस हो॥

अपनी जलधारा से सबको सींचती हो

गंगा तुम कितना सहती हो॥

जन्म हो या हो मरण मे

समाहित तेरे चरण में,

जो भी आ जाये शरण में

भूलकर छल-कपट उसके

पाप सब तुम हरती हो॥

गंगा तुम कितना सहती हो॥

ठोकरें कितनी लगें तुमको

फिर भी सबको हंसाती हो,

जो भी प्राणी आये तेरे घाट पर

देके  तुम जीवन सरस सबको

प्यास सबकी बुझाती हो॥

धर्म जाति से परे होकर 

सबकी बाहें थाम लेती हो,

गंगा तुम कितना सहती हो॥


 पूर्णिमा त्रिपाठी

109/191 A, 

जवाहर नगर कानपुर

8707225101




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Kanpur, Uttar Pradesh, India
मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.