Tuesday, March 16, 2010

आतंक वाद

 यह  जहर  न  जाने  कितनी
बलियां   और  लेगा ?
जाने  कितनी  माँ -बहनों   के
हृदय  तड्पाएगा .
कब  तक  होता   रहेगा
मानवता  का  नरसंहार ?
कब  तक  खंडित  रहेगा
मेरे  स्वदेश  का  यह  दुलार
क्या  कभी   न  हो  पायेगा
भाई  का  भाई  से  प्यार ?
क्या  टुकड़ो  में  बट  जाएगी
कश्मीरी  सुषमा  की  बहार
क्यों  प्यार  बांटते  हो  सबका
क्या  तनिक  भी  तुमको  छोभ  नहीं ?
राम  रहीम  की   वाणी    क्या  थी ?  
उसकी   कोई  सोंच   नहीं ,
बंद  करो   यह   भूल -  भुलैया  
झटको  इन  तुच्छ   विचारों  को.
यह  सारा  भारत  अपना  है
मत  सोचो   देश  बाटने  को.
आतंकवाद  की   यह  ज्वाला
जैसे  ही  बुझ  जाएगी  ,
भाई  चारे  से  हर्षित  हो
यह  वसुधा  दीप  जलाएगी .

पूर्णिमा त्रिपाठी







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मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.