Friday, March 5, 2010

वोह एक लड़की

वोह   एक  लड़की
 मखमल  के  जैसी 
 ओस  में  नहाई  
सकुचाई  शरमाई
 सुंदर  सा  मुखड़ा
 वोह  एक  लड़की .  
अलबेली,   अनजानी , 
थोड़ी  सी  पहचानी, 
 आँखों  में  सपने  है 
 सपने  जो  अपने  है 
 कुछ  कर  गुजरने  का 
 जज्बा  भी  था  उसमें 
 वोह   एक  लड़की. 
 छूने  को  तारों   को
 बहती  बयारों   को 
 मन  में  उमंगें  थी 
 तिरती  तरंगे  थी
.साह्स  और  छमता का 
 संगम  अनूठा  था 
 वोह  एक   लड़की . 

महिला दिवस ८ मार्च पर विशेष

आओ मनाएं फिर
एक बार महिला दिवस,
संकल्प करें ज्यादा
भ्रूढ़ हत्याओं की
प्रतिज्ञा करें नारी के
नारीत्व के खंडन की
समाज में स्त्री पुरुष
की समानता की.
आओ फिर पीटें ढोल
स्त्रियों के आरक्षण का
आओ फिर फहराएं परचम
दिखावे की सुरक्षा का
आओ फिर करें नीलामी
किसी कमला विमला
और सलमा की.
आओ फिर करें चर्चा
बेटों को कटोरा भर दूध
और बेटियों को पानी की,
आओ फिर करें अभिमान
मुट्ठी भर सम्मानित और
करोडो अपमानितों की
पर ; इन सबसे परे,
आओ फिर मनाएं एक
और महिला दिवस
नारी के नारीत्व
की परिपूर्णता का.
आओ करें प्रतिज्ञा
अपने को अबला से
सबला बनाने की
स्वयं उठ कर
दूसरों को
ऊँचा उठाने की
आओ पुनः करें प्रयास
समाज को स्वच्छ सुंदर
और विचारवान बनाने की.
आओ छू लें आकाश
इस महिला दिवस पर .


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मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.