Friday, November 19, 2010

मुझे मालूम है

मुझे मालूम है कि
यह पहला अहसास है
जिसने मेरी आत्मा को छुआ
मैं बार- बार इस छुअन को 
महसूस करना चाहती हूँ .
मुझे मालूम है कि
यह क्षणिक आवेग है ,
मुझे मालूम है कि 
यह मृग मरीचिका  है, 
फिर भी इसके पीछे  भागती हूँ .
मुझे मालूम है कि 
रेत  से   महल   नहीं  बनते   
फिर भी बनाने   का 
 प्रयास   करती  हूँ .
मुझे मालूम  है कि इन  
क्षणों  में  बार-बार मरी  हूँ
फिर  भी जीना   चाहती हूँ . 
मुझे  मालूम है कि 
समर्पण  ही  प्रेम  की परिभाषा  है 
फिर  भी अपने  आप  को बांटती   हूँ .
मुझे मालूम है की
 यह स्वप्न   है, छलावा है 
फिर भी पलकों  पर  सजाती  हूँ .
मुझे मालूम है की तुम  
सूर्य  हो  मैं हूँ धरा  
फिर भी तपिश  पा 
तपना  चाहती हूँ .
मुझे मालूम है की
 तुम  व्रक्ष हो  मैं छांव हूँ 
तुम्हारे साथ चलना चाहती हूँ .
मुझे मालूम है की तुम 
हारकर जीते ,
मैं जीत कर हारी 
फिर भी तुम्हे 
जीत देना चाहती हूँ .
मुझे मालूम है की तुम 
शब्द-शब्द बिखरे हो 
तुम्हे समेट कर ,
एक रूप देना चाहती हूँ .


पूर्णिमा त्रिपाठी    

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मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.