Tuesday, January 19, 2010

कड़ाके की ठण्ड

पूरे उत्तरी भारत में कड़ाके की ठण्ड पड़ रही है ऊपरी तबके के लोग तथा कुछ हद तक मध्य वर्ग के लोग इसे आसानी से झेल लेते है पर वे क्या करे जिनका ओढ़ना आसमान और बिछौना जमीन है न तो प्रकृति को उन पर दया आती है और न ही हमारे कथित सभ्य समाज को. इस समय आवश्यकता है की हम सभी अपनी सोई हुई संवेदना को जगाये और जिससे जो बन पड़े उनके लिए करने का प्रयास करे .कुछ कम्बल और कुछ अलाव कइयो को जीवन दान दे सकते है .हम जो भी है जहाँ भी है जितना कुछ कर सकते है करें , आइये हम सभी मिलकर अपने ही भाई बहनों को बचाने की जद्दोजहद करे.

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मै पूर्णिमा त्रिपाठी मेरा बस इतना सा परिचय है की, मै भावनाओं और संवेदनाओं में जीती हूँ. सामाजिक असमानता और विकृतियाँ मुझे हिला देती हैं. मै अपने देश के लोगों से बहुत प्रेम करती हूँ. और चाहती हूँ की मेरे देश में कोई भी भूखा न सोये.सबको शिक्षा का सामान अधिकार मिले ,और हर बेटी को उसके माँ बाप के आँगन में दुलार मिले.